रिश्ते.....
रीते हाथ ही तुमआये थे
'औ' रीते ही तुम जाओगे,
है सही नहीं लगता ये सब
जब खुद से खुद बतियाओगे।
उन राज़ का क्या जो मन भीतर
हैं दफन कहीं गहरायी में,
जो नहीं उजागर हुए कभी
रिश्तों की अनकही सच्चाई में।
जीवन की राह सजाने में
उलझन से खुद को बचाने में,
कुछ समझौते करने होते
पथ कहीं बदलने हैं होते ।
हर बार नहीं सिद्धांतो पर
रिश्तों की बलि दी जाती है,
किसी रोज़ अकारण ही अपनी
सीमा भी बदली जाती है।
सीधे चलने पर जीवन में
अवरोधों को बढ़ते देखा,
कुछ वक़्त बेवक्त समझौतों से
नैया को संभलते है देखा ।
हैं वृक्ष अड़े जो भी वन में
वो पहले भू पर गिरते है,
वायु भी न उन्हें डिगा पाती
जो हो विनम्र झुक चलते हैं।
इसलिए अकड़ने से बेहतर
झुक जाने में कोई शर्म नहीं
जब दांव पर हो रिश्ते गहरे
उनके उपर फिर अकड़ नहीं।
गीता के उपदेशों भी
केशव ने यही बताया है,
सन्मार्ग वही जिस पर प्रतिपल
रिश्तों की गहरी छाया है।
..... कमलेश