कमलेश जोशी की कलम से...

माँ तो माँ है.....



माँ तो माँ है,
निश्छल प्रेम सदा करती
कांटे मेरी राहो के
हर पल वो चुनती रहती।

नहीं गिनाती अपने दुख जो
मेरी पीड़ा की सुधि लेती,
कभी उतारती नज़र वो मेरी
कभी आँचल सर रख देती।

नहीं चाहती कभी और कुछ
सिवा मेरे खुश होने के,
माँ है वो कब रो लेती है
पता नहीं दुख होने पे।

उसका आँचल उसकी ममता
बहुत बड़ा है कवच मेरा,
मेरी राह की हर अढचन का
एकमात्र संबल मेरा।

मुझे कभी हो
ज़रा दर्द तो
भान उसे हो जाता है,
लाख छिपाऊँ दर्द मेरा
पर ज्ञान उसे हो जाता है।

मैं भूलूँ पर वो ना बिसारे
प्रतिपल सुधि वो लेती है,
कहीं रहूँ मैं इस भूतल पर
सदा साथ वो रहती है।

नहीं योग्य उसके स्नेह के
कभी स्वयं को पाता हूँ,
उसके आशीषों के आगे
सदा द्रवित हो जाता हूँ।

जिस तिस से लड़ लेती है वो
मैं सही गलत कुछ भी होऊँ,
मैं उसका हूँ सदा राम
वह कौशल्या बन जीती है।

मैं अनजाने बात बात पर
उसका हृदय दुःखाता हूँ,
वो माँ है, ना कभी रूठती
बस पल को मुँह सी लेती।

जाना तो सबको जाना है
पर जब माँ तू जाएगी,
नहीं जानता कैसे सह पाऊँगा
तेरी चिर विदाई मैं।

और न जाने कौन लड़ेगा
प्रतिपल मेरी लड़ाई में।

तेरे बिन हर आंगन सूना
हर उत्सव हर दीवाली,
घर सूना, मन सूना होगा
माँ तुझ बिन ये फुलवारी।

..... कमलेश




प्रतिक्रियाएं :

Priti Singh (Ranikhet)
Posted On: 22-12-2020

Very true
Tx a lot.
- Kamlesh Joshi
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