ख्याल.....
कभी मुस्कुराना, कभी रूठ जाना
कभी आके ख़्वाबों में यूं गुदगुदाना।
ये रोशन दिनों के उजाले में छिपना,
औ अंधेरी रातों में मिलना मिलाना।
कभी रूह को मेरी एहसा कराना,
यहीं हूं तुम्हारे करीब ये बताना।
कभी जानकर भी अनजान बनना,
कभी ख्वाहिशों को मन में दबाना।
लबों पर अधूरी सी बातों को लाना,
मेरे मुंह से फिर उनको सुनना सुनना।
मिले वक्त जब भी तो मिलने बुलाना,
बाहों में भरके मुझे ये समझना।
कि, डरता है ये मन कई उलझनें हैं,
कठिन गर नहीं तो सरल भी नहीं हैं।
मगर मन ये बसता है तेरे ही मन में,
सुकूं भी ये मिलता है तेरे ही संग में।
..... कमलेश
Be the first one to post a comment...