मेरी बेटी.....
वो कंचन, निर्मल काया
वो शीतल मन, मधुमय छाया
वो चंचल, चपला सुमधुर बाला
घर आता देख मुझे अपने
मेरे स्वागत को उत्सुक हो
बाहें अपनी फैला करके
उसमें समेट खुश होती है,
फिर पहला प्रश्न यही होता
क्यों देरी से घर आये हो
बब्बा मेरे क्या लाये हो ?
और नन्हे उसके हाथों से फिर
जेबें मेरी छन जाती हैं,
कोमल स्पर्श नया देकर
उष्णता नयी दे जाती हैं।
मेरी बेटी
निश्चल रचना,
हर लेती है मेरी वेदना,
थक माँद लौट जब आता हूँ,
ढूँढता उसे घर पाता हूँ,
जिससे मेरा उपवन वय है
वो मेरा जीवन मधुमय है।
मेरे मस्तक की चिंतन रेखा
धूमिल क्षण में कर जाती है,
मैं भी सब भूला सा अपनी
दुनियाँ में गुम हो जाता हूँ,
माथे पर पा स्पर्श उसका
कुछ क्षण बेसुध हो जाता हूँ।
फिर उसको गले लगा करके
हिय समीप चिपका करके
ठंडक सी मैं पा जाता हूँ ।
ममता का रूप नया देकर
वह भाव भ्रमित कर जाती है
मेरी प्यारी "गुल्लू" मुझको
इक नवजीवन दे जाती है ।
..... कमलेश