बहुत दुःखता है......
ये एक चुभन
बच्चे में विकास की लगन
मेरा बहुत सोचना
उनको बोझ लगना,
समय की वेदी पर
स्वयं को होम करना
किसी अनिश्चित राह पर
बस यूं ही निकल बड़ना
पता नहीं,
कितना कठिन
कितना दुश्कर
कितना अकल्पनीय
पर भारी तो है
सहज रहना,
बहुत दुःखता है;
आशाओं का धुलना
ख्वाबों का बिखरना
आंखों के सामने
रोज कुछ टूटना,
समय की दौड़ में
पैरों का अड़ जाना
सहारे के होते हुए भी
अपने ही सामने
खुद का ढह जाना,
और फिर मंजिल को तकते
भीगे नयनों से
अपने से दूर होते देखना
बहुत दुःखता है।
.......कमलेश
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