कमलेश जोशी की कलम से...

मेरे प्रभु.....



जीवन के अवसान प्रहर पर
न जाने क्या पीड़ा होगी,
कितना मन ये विचलित होगा
कितनी अंतः वेदना होगी!

यह शरीर क्षय तो होगा ही
रुग्णता इसे जब घेरेगी,
सशक्त इंद्रियां शिथिल पड़ेंगी
ये स्वांस भी लय को तोड़ेगी!

मैं उठने को जब बार बार
हो व्यथित तुम्हें ही खोजूंगा,
हे प्रिये कहीं तुम घृणा दृष्टि से
देख मुझे क्या टोकोगी ?

मेरा स्वाभिमान मेरे तब
अंतर्मन को झकझोरेगा,
सुन कर अपनी उलाहना को
प्रतिपल मुझको दुत्करेगा!

हूं आज चाहता मैं जितना
कल उससे बेहतर चाहूंगा,
मैं हाथ तुम्हारा थाम सदा
जीवन में बढ़ता जाऊंगा !

हे ईश्वर मेरा यही निवेदन
जब वृद्धावस्था को पाऊं,
बुद्धि रहे स्थिर शांत और
जिव्हा मधुर स्नेहिल पाऊं!

हे प्रभु मेरे दया दृष्टि हो
अंत समय मुझ पर तेरी,
हाथ रहे मेरे सर पर प्रभु
टूटे मेरी जब जीवनडोरी!

........... कमलेश




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