कमलेश जोशी की कलम से...

अब तुम....



अब तुम.....

अब तुम बच्चे रहे नहीं
वय हुए, समय के साथ बड़े,
मुझे, ये खुद को समझाना होगा
अब तुमसे, कहना कम,
बस सुनना होगा।
तुमको अब,
मैं रोक नहीं सकता,
हाँ तुम, मुझे टोक सकते हो।
बड़े जो हो गए हो,
अब शब्द भी आ गए हैं,
और आवाज भी।
परंतु मैं, वही हूं... बस,
समय बदल गया है,
भाव और काल बदल गया है,
अब पहले सी बात नहीं,
कि, बिना सोचे कुछ भी कह दो।
अब तो मां भी,
कहती नहीं, बोलती है।
...........अच्छा है !

पर मेरे बच्चो,
ये आसमान बहुत बड़ा है
परिंदों की उड़ान को।
ध्यान से....
यहां बहुत व्याध भी हैं,
बस, मेरे अनुभव से सीख लेना,
मुझे पीड़ा नहीं,
मैं तो राह बना चुका,
अब उस पर चलता हूं बस।
टेढ़ी मेढ़ी जैसी भी है,
मेरी खुद की जिम्मेदारी है,
पर तुमने समय पर ना जाना,
तो निश्चित ही पछताओगे,
है सांस ये जब तक जीवन में,
साथ मेरा तुम पाओगे।
उसके आगे सब रहें सुखी,
है यही कामना अब मेरी,
सब काम तुम्हारे पूरे हों,
जीतो हर पल जीवन बेरी,
खुश रहो, कि यही पूंजी है,
साधन रखो कि दुःख ना हो,
जीवन सुखमय निरोगी हो।
...... शेष एवमस्तु !

....... कमलेश




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