मन.....
मन कर तू एक सवेरा
जिसमें हो नया बसेरा,
दिल में उल्लास भरा हो
उत्सव सा प्रेम भरा हो,
मैं जहां प्रफुल्लित होकर
और अपनों में घुलमिल कर,
जी लूं पल कुछ हंस करके
जीवन की उलझन तज के,
उपजा विषाद मिटा दे
मन उपवन नया बना दे,
मेरे मन की पीड़ा का
हल नहीं मुझे दिखता है,
जीना चाहूं जीवन जो
समीकरण नहीं बनता है,
जिनसे नाता मेरा है
खुश नहीं कभी आते हैं,
कमियां मेरे भीतर की
वो ढूंड पकड़ लाते हैं,
मैं फिर अपने को उलझा
और परेशान पाता हूं,
सपनों के बुने महल को
कोसों दूर खड़ा पाता हूं,
शायद ये ही जीवन है
मन की मेरे उलझन है,
विश्वास मुझे है लेकिन
आएगा नया सवेरा,
मेरी कमियों को लेकर
डूबेगा कभी अंधेरा।
..... कमलेश