बदलाव.....
मेरे अंदर बदलाव है,
या स्थितियों में ठहराव हैै।
तेरे मन की उलझन ने या
कुछ फैलाया अलगाव ये है।
थोड़ा तम को तू दूर तो कर,
थोड़ा मैं उजियारा लाऊं।
चल हाथ पकड़ कुछ दूर चलूं,
एक बार मैं फिर से मिल पाऊं।
माना, मन तेरा विचलित है,
माना कि, बड़ा तूफ़ान खड़ा
माना कि डगर है कठिन बड़ी
माना, नैया मझधार चड़ी।
तेरे में कितनी ताकत है,
यह देख रही पतवार तेरी।
कब हार को तूने माना है ?
यूं राह में क्यूं झुक जाना है।
मन में संशय पैदा मत कर
जब जीत हमारी निश्चित है,
मुझको किंचित संदेह नहीं
तू जीतेगा ये तो तय है।
..... कमलेश